रानी की वाव

आरबीआई द्वारा जारी नए करेंसी नॉट पर छपी उस छवि को लेकर खाफी उत्सुकता जताई जा रही है  जो अब कंचनजंघा पर्वत की जगाह है इस छवि को ध्यान से देखिए अब सवाल यह  उठता है की रानी की वाव क्या है और यह हमारे लिए इतना।महत्वपूर्ण क्यो है भारत का यह एक प्रसिद्ध स्थापत्य गुजरात के पतन जिले सरस्वती नदी के तट पर स्थित हैं यह तथ्य की इसे 2014 में विश्वधरोहर स्थल बनाया गया ओऱ 2016 में देस में सबसे विरासत स्थल के रूप में भी सम्मानित किया आपके लिए सोलंकी राजवँश से वास्तुकला के इस अदभुत नमूने का पता लगाने के लिए भी पर्याप्त कारण होना चाहिए आप यह जान कर हैरान हो जाएंगे कि रानी की वाव को रानी ने अपने पति की याद में बनाया है रानी की वाव या रानी की बावड़ी गुजरात के पाटन जिले में स्थित हैं इसका निर्माण 1022 ओऱ 1063 ई के बीच किया गया था 1950 के दशक में।कई साल खोए रहने के बाद इस खूबसूरत दशक को फिर से खोया गया था यह कि प्रचंड नक्कासी अदभुत है इस जगह में कई आदित्य खासियत सामिल है जिन्होंने इसे देश मे सबसे खूबसूरत बावड़ीयो में से एक बना दिया है इस बावड़ी का निर्माण सोलंकी राजवँश के राजा भीमदेव की पत्नी ने भीमदेव की याद में कराया 1063 ई में कराया था राजा भीमदेव को गुजरात का सोलंकी राजवँश का सस्थापक भी माना जाता है गुजरात के प्राकृतिक भुगर्व के कारण यह बहु मूल्य दरोहर लगभग 700 सालो तक गात के पत्तो के नीचे दबी हुई थी जिसे बाद में पुरातत्व विभाग द्वारा खोजा गया था रानी की वाव के बारे में आज हम कुछ रोचक तथ्य जानेंगे इस ऐतिहासिक ओऱ भव्य बावड़ी का निर्माण 1063 में सोलकी राजवँश के राजा रानी उद्यामती द्वारा अपने स्वर्गीय पति भीमदेव की याद में करवाया गया था इस माना जाता हैं कि यह बावड़ी सरस्वती नदी के तट पर स्थित हैं इस बावड़ी का निर्माण मारू गुजर स्थापत्य सेली में किया गया था वह जो इस कि उत्कृष्टा को ओऱ भी भव्य बना देता है इस बावफी के पश्चिमी छोर पर प्रमुख शिल्प क्रीक मौजूद है जो कि कुआ है जिसका व्यास10 मिटर ओऱ गहराई लगभग 30 मिटर है इस बावड़ी की लंबाई 64 मियर चौड़ाई मिटर ओऱ गहराई 27 मीटर है यह बावड़ी भारत मे स्थित सबसे बड़ी बावड़ीयो में से एक है यह लगभग 6 एकड़ चेत्रफल में फैली हुई है रानी की वाव मारू गुजर वास्तुकला में एक कोम्प्लेक्स में बनाई गई है इसके अंदर एक मंदिर ओर सीढ़ियों की सात कतारे बनी हुई है जिसमे 700 सभी ज्यादा मूर्ति कलाओ का प्रदर्शन किया गया है बावडी के भीतर एक छोटा दरवाजा भी है जिसके भीतर 30 किलोमीटर एक सुंरंग भी है लेकिन फिलहाल इस सुरंग को मिट्टी ओऱ पथरो से बंद कर दिया गया है रानी की वव जल साग्रह का उत्कृष्ट उदाहरण है यह एक ऐसी प्रणाली है जिसे पूरे उपमहाद्वीप में पसंद किया जा।सकता है बावड़ी के अंदर भगवान विष्णु से सम्बंधित की मूर्तियां ओऱ कलाकृतिया बनी हुई है यह पर भगवान विष्णु के दसावतार के रूप में ही निर्माण किया गया है जिसमे मुख्य रूप से कल्कि राम क्रष्ण ओऱ फुसरे मुख्य अवतार भी शामिल है साल इसे इस आई से साफ कर के  इसका जिम्मा अपने पास लिया था सालो से इसमे गड भरा हुआ था लगभग 50 60 साल पहले यहां आयुर्वेदिक पौदे पाए जाते थे तब  यहा के लोग बीमारियों को दूर करने के लिए पानी लेने आते थे साल2001 में इस बावड़ी में बनी हुई दो मुर्तिया चोरी कर ली गई थी जिनमे एक मूर्ति गणपति की ओऱ दूसरी ब्रम्हा ब्रामणी की थी 

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