जैसलमेर की हवेलियां

  • पटुओं के हवेली: 18 वीं शताब्दी के उतरार्द्ध में जैसलमेर के एक व्यवसायी गुमानाचंद पटुआ के 5 पुत्रो ने इस हवेली का निर्माण करवाया था । छियासठ झरोखों से युक्त ये हवेलियाँ निसंदेह कला का सर्वेतम उदाहरण है। ये कुल मिलाकर पाँच हैं, जो कि एक-दूसरे से सटी हुई हैं। ये हवेलियाँ भूमि से 8-10 फीट ऊँचे चबूतरे पर बनी हुई है व जमीन से ऊपर छः मंजिल है व भूमि के अंदर एक मंजिल होने से कुल 7 मंजिली हैं। पाँचों हवेलियों के अग्रभाग बारीक नक्काशी व विविध प्रकार की कलाकृतियाँ युक्त खिङ्कियों, छज्जों व रेलिंग से अलंकृत है। जिसके कारण ये हवेलियाँ अत्यंत भव्य व कलात्मक दृष्टि से अत्यंत सुंदर व सुरम्य लगती है।
  • नथमलजी की हवेली : जैसलमेर राज्य के दीवन मेहता नाथमल ने इसका निर्माण 1884-85 में करवाया था
  • यह हवेली पाँच मंजिली पीले पत्थर से निर्मित है। हवेली में सुक्ष्म खुदाई मेहराबों से युक्त खिङ्कियों, घुमावदार खिङ्कियाँ तथा हवेली के अग्रभाग में की गई पत्थर की नक्काशी पत्थर के काम की दृष्टि से अनुपम है। इस अनुपम काया कृति के निर्माणकर्त्ता हाथी व लालू उपनाम के दो मुस्लिम कारीगर थे
  • सालिमसिंह की हवेली – जैसलमेर राज्य के प्रधानमंत्री सालिमसिंह मेहता ने 18 वीं शताब्दी में इस हवेली का निर्माण करवाया था . इस हवेली को “मोती” महल भी कहते है. जहाजनुमा इस विशाल भवन आकर्षक खिङ्कियाँ, झरोखे तथा द्वार हैं। नक्काशी यहाँ के शिल्पियों की कलाप्रियता का खुला प्रदर्शन है। इस हवेली का निर्माण दीवान सालिम सिंह द्वारा करवाया गया, जो एक प्रभावशाली व्यक्ति था और उसका राज्य की अर्थव्यवस्था पर पूर्ण नियंत्रण था।

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