कुचामन का किला

वीरता ओर सौर्य का प्रतीक यव किला विशाल ओर उची पहाड़ी पर बसा है जो गिरी दुर्ग का सुंदर उदाहरण हैं उन्नत प्राचिन ओर सुदृढ़ पुर्जो वाला यह किला प्राचिन शास्त्रो में स्थित प्राचिन शास्त्रो में शिल्प शास्त्रो में वर्णित दुर्ग स्थापत्य के आकरसो के अनुरूप सुंदर उदाहरण है नागौर जिले की नावा तहसील में स्थित मेड़तिया राठोड़ो का एक प्रमुख ठिकाना था यह किला सुदृढ़ किले के लिए भी विख्यात हैं भव्य दुर्ग के निर्माण के लिए अपने भव्य ओर सुदृढ़ दुर्ग के लिए भी विख्यात है इस भव्य दुर्ग के निर्माण के सम्बंध में प्रमाणिक जानकारी का अभाव है पट प्रचलित लोग मान्यता ओर इतिहास के अनुसार यहां के प्राकृतिक मेड़तिया शासक जालिम सिंह ने वनखण्डी नामक महात्मा के आशिर्वाद से जो उस वक़्त यह पर तपस्या करते थे इस किले की नींव रखी जिसका कालांतर में उनके वंश ओर विस्तार ओर परिवर्तन किया आप को बता दे कि किले में आज भी उस महात्मा का दूना विधमान है औऱ प्रचलित हैं  यही नहीं यहां के शासकों ने महात्मा का सम्मान रखते हुए उनके स्थान पर सबसे ऊपर रखा है राजा के रहने के महल सेनिको के रहने के आवास किले में कोई भी इमारत महात्मा के दुने से महात्मा का स्थान था उससे ऊपर कोई भी इमारत नही बनाई गई है किले के निर्माण को लेकर दूसरी सभावना एक ओर भी है की इस पहाड़ी पर हो सकता है गोड़ शासको द्वारा निर्मित कोई किला बना हो जिसका जालिम सिंह ने जिनोंद्वार करवाया हो जिसको विस्तार देकरके इसको भव्य बना दिया हो क्योंकि मुगल बादशाह शाहजहाँ के शासन काल मे गोदो का प्रताप था वो अपने उत्कृष् पर था उनके पास बड़े बड़े मनसब ओर जागीरे थी तो हो सकता है यहै गोदो की अग्रिम चौकी के रुप में चोट मोटा किला बना हो औरंजेब का जब राजा रन हुआ तो उसके राजा रावण के साथ ही घोड़ो के भी पराभव का सिलसिला प्रारम्भ हो गया ओर वीर वर्ण जयमल के वंशज रगुनाथ सिंह मेड़तिया के नेतृत्व में राठोड़ो के सक्तिसलि गोडों के साथ अनेक युद्ध लड़े ओर अनंत सेखवटोकी सहायता से पुनः प्रयास कर दिया ओर 1858 ई में रगुनाथ सींघ मेड़तिया ने गोड़ शासित भू भाग था उसके ऊपर अधिकार स्थापित कर लिया ततपश्चात यह भूभाग जोधपुर रियासत के अधीन हो गया ठाकुर जालिम सिंग उन्ही रधुनाथ सिंग मेड़तिया के पुत्र थे जालिम सिंग पिता को मिठड़ी गांव जागीर में मिला था जो कुचामन के पास ही है एक जनसुर्ती के निसार जिस पर्वत पर कुचामण बस है कुचबंदियो की ढाणी थी सभवत उसी के नाम पर यह किला कुचामण कहलाया कुचामण ओर उस ने निकटवर्ती परदेस पर गॉड छतरियों को दीर्घकालिक वर्चस्व रहा जिसकी पुष्टि कुचामण के प4 के रानी मिठड़ी सीलन ओर अन्य शासको पर शिलालेख लगे है  उनकी राझधानी मारोठ थी जो कि यह प्राचिन नगर है कुचामण से थोड़ी ही दूर है अनेक वर्ष तक जब गोडॉ राज्य किया इस कारण आज भी इस इलाके को गोडो के नाम से ही जानते है जोधपुर राज्य के इतिहास के अनुसार जोधपुर के महाराजा अधयसिंग जी थे उन्होंने1727 ई में जलमसिंग मेड़तिया को उनको कुचामण की जगी भी नाइक कर दी थी यह जालिम सिंग अथक पराकर्मी थे ओर जोधपुर रियासत के ओर से अहमदाबाद की जो लड़ाई थी सर्बलन्द खा जो वह का बास्य था उसके खिलाफ लड़ाई थी उसमें यह वीर गति को प्राप्त हुए थे किसनिय इतिहास कारो के अनुसार इस भव्य किले की निम जालिम सिंग ने रखी थी ओर किले का निर्माण भी उन्होंने नई करवाया था जिसका उनके वंशजो ने विस्तार कर ओर सानदार बनाया था कुचामण किले की सान रियासतों के किले से किसी भी द्रष्टि से कम नही है कुचामण के किले को किलो का सिरमौर कहा जाता हैं इसके बारे में एक लोकोक्ति भी प्रसिद है की इस किले रानी जाई के पास भले ही हो ठुकरानी जी के पास नहीं मतलब ऐसा किला राजाओ के पास तो भले ही हो पर किसी भी जागीरदार यानी ठाकुर के पास नहीं हो सकता जागीरदारों किलो में सिर्फ कुचामण का किला ही प्रसिद है कुचामण व्यापारिक रूप से प्रसिद्ध होने के कारणकुचामण की जो जागीर थी उसकी आय बहुत ज्यादा थी क्योंकि जितने भी व्यापारी यह से गुजरते थे उनको चूंगी कर लगता था वो देते थे ठिकाने की आर्थिक स्थिति अच्छी होंवे के कारण सम्भव हुआ यह सानदार यह के शासको ने इतना भव्य किला बनाया इस किले के ठीक नीचे भी एक गढ़ बना हुआ है जहाँ से किले के ऊपर चढ़ने के लिए एक गुमावदर सीढ़िया बनी हुई हैं कुचामण के इस किले में लगभग 18 महल है 

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  1. 1857 Ki Kranti ke Samay Kuchaman ka kaun sa samnt vha gya tha

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