Posts

Showing posts from February, 2021

रानीजी की बावड़ी

Image
उत्तर: बावडी अर्थात वापी, जिसे अंग्रेजी में स्टेप वेल (सीढियों वाला कंआ) कहा जाता है। छोटी काशी बूंदी में ऐसा सैकड़ों बावड़ियां है। इसलिए श्बूंदी शहर को सिटी ऑफ स्टेप वेल्सश् कहा जाता है। बूंदी की रानीजी की बावड़ी की गणना तो एशिया की सर्वश्रेष्ठ बावड़ियों में होती है। इस अनुपम बावडी का निर्माण 1699 ई. में राव राजा अनिरूद्ध का रानी नाथावती ने करवाया था । इस कलात्मक बावडी के तीन तोरण द्वार हैं। बावड़ी की बनावट, शिल्प, सीढ़ियों का लम्बा श्रृंखला, मूर्तिशिल्प एवं वातावरण सभी मिलकर एक मोहक संसार का निर्माण करते हैं। बावड़ी की भव्यता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि यह बावडी करीब 300 फीट लम्बी एवं 40 फीट चैड़ी है। बावड़ी की गहराई 200 फीट है। मुख्य प्रवेश द्वार से जल स्तर तक ढलान में लगभग 150 सीढ़ियां पार करनी पड़ती हैं। 27वीं सीढ़ी के दाएं एवं बाएं शिव एवं पार्वती की मूर्तियां हैं । करीब 12 फीट चैड़ा 47वीं सीढ़ी पर बना भव्य एवं कलात्मक तोरण द्वार बावड़ का प्रमुख आकर्षण है। अलंकृत तोरण द्वारों की मेहराबें लगभग 30 मीटर ऊँची है। सीकर जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर दसवीं सदी का जी

चाँद बावड़ी

Image
राजस्थान के रेगिस्तान में कई अनमोल खजाने छुपे हुए है ऐसी ही जगह के तलास में।में पहुची  राजस्थान के दौसा में स्थित आभानेरी गांव आभानेरी यानी आभा नगरी चमकने वाला नगर भारत के अनेकों में से एक धरोहर है भारत मे प्राचीन काल से ही बावडी निर्माण की परंपरा रही है बावड़ीयो का इतिहास इन्ही के आकार की तरह लम्बा रहा है बावड़ी उन सीढ़ीदार कुओ या तालाबो को कहते है जिसे सीढ़ियों के सहारे जल तक आसानी से पहुचा जा सके आभानेरी में मौजूद चांद बावडी के बारे में मैने जब सुना तो इस जगह पर जाने को दिल इच्छुक हुआ चाद बावड़ी दुनिया की सबसे गहरी व सुंदर बावड़ी के नाम से भी प्रसिद्ध जयपुर शहर के समीप यह जगह सबसे पुराने आकर्षणों में से एक है निकुम वंश के राजा चंदा द्वारा 9 वी सताब्दी में इस स्थान के पानी के सरक्षण ओऱ राजस्थान को पानी मिलके के।वजन से बनाया गया था यह बावड़ी 3 ओऱ से सीडी नुमा है जबकि इसका 4 हिस्सा पवेलियन है यह मण्डप के अलावा सुंदर मूर्तियों को भी स्थापित किया गया है साथ ही यहां मन को मोह लेने वाली नक्काशी भी यहां मौजूद है यहा पर कला।के।प्रदर्सन के लिए मंच ओर राजा ओऱ रानियों के कमरे

नीमराना की बावड़ी

Image
हमारे देश मे अनेको बावड़ीया बनी हुई है पर आज हम जिस बावड़ी की बात कर रहे है उस  बावड़ी कि बात ही अलग है इस बावफी का।नाम है नीमराना की बावड़ी यह बावड़ी भेहद सुंदर ओर बहुमंजिला है नीमराना की बावड़ी राजस्थान के जयपुर शहर से दूर लगभग150 किलोमीटर दूर से अलवर जिले के नीमराना कस्बे में।स्थित है जो कि यहा के प्रमुख पयर्टन केंद्रों में एक है इस बावड़ी का निर्माण नीमराना के।राजा ने 1740 ई में अपने राज्य की प्रजा के लिए करवाया था यह बावड़ी दूर से देखने पर एकदम समतल नजर आती है पर आप नजदीक जाकर।देखेंगे तो आप को पता चलेगा की यह बावड़ी 9 मंजिल गहरी है इस बावड़ी में आप राजपूत सेली की स्थापत्य कला देखने को मिलती है यह बावड़ी 9 मंजिल इमारत है ओऱ हर मंजिल की ऊचाई करीब20 फुट  है इस बावड़ी में।प्रवेश करने के बाद आप जैसे जैसे नीचे उतरते जाएंगे वेसे वेसे बावड़ी का आकार छोटा होता जाता है जब इस बावड़ी का निर्माण किया गया था तब इसका उपयोग पानी पीने ओर सिचाई करने के लिए किया जाता था यह बावड़ी राजपूत वास्तुकला का एक नमूना है हर मंजिल पर बेहतरीन नक्कासी के साथ बेसकीमती पथर जड़े हुए थे पर वक्त

रणसी की भूत बावड़ी

Image
राजस्थान के जोधपुर से करीब 105 किलोमीटर दूर एक ऐतिहासिक गांव की जिसे रणसी गांव कहा जाता है यहा पर ही मौजूद है भूत बावड़ी ए बावड़ी पस्थर कला का एक बेजोड़ नमूना है इस बावड़ी में नीचे जाने के लिए चारो ओर सीढ़िया बनी हुई हैं इस पर नक्कासी किए हुए कई खम्बे बने हुए हैं जो इस कि सुंदरता को निखारते है बावड़ी के निर्माण में लोकतकनिक पत्थरो का जोड़ा गया है जो आज भी झूलते हुए दिखाई देते हैं दोस्तों इस बावड़ी के निर्माण के पीछे एक बहुत ही रोचक कहानी है कहते है एक बार रणसी गांव के ठाकुर रात में गोड़े पे सवार होकर कहि जा रहे थे लेकिन तबी उन्होंने देखा कि एक भूत ने उन्हें उन्हें कुश्ती करने के लिए ललकारा है ठाकुर साब ने भूत की बात मान ली ओऱ भूत के साथ कुश्ती लड़ी ओऱ भूत को हर दिया तब भूत तब भूत ने कहा क्या वह उनका गुलाम है जो ठाकुर साब कहेंगे वह वही करेगा ठाकुर साब ने रणसी गांव में एक बावड़ी ओऱ अपने लिए महल बनाने का आदेश दिया भूत ने इस काम के लिए हा तो कर दी लेकिन उसने शर्त रखी कि ए बात ए बात किसी को पता ना चले साथ ही साथ उस ने ए भी कहा कि वो का परोक्ष रूप से ही करेगा वो जो भी निर्माण कर

रानी की वाव

Image
आरबीआई द्वारा जारी नए करेंसी नॉट पर छपी उस छवि को लेकर खाफी उत्सुकता जताई जा रही है  जो अब कंचनजंघा पर्वत की जगाह है इस छवि को ध्यान से देखिए अब सवाल यह  उठता है की रानी की वाव क्या है और यह हमारे लिए इतना।महत्वपूर्ण क्यो है भारत का यह एक प्रसिद्ध स्थापत्य गुजरात के पतन जिले सरस्वती नदी के तट पर स्थित हैं यह तथ्य की इसे 2014 में विश्वधरोहर स्थल बनाया गया ओऱ 2016 में देस में सबसे विरासत स्थल के रूप में भी सम्मानित किया आपके लिए सोलंकी राजवँश से वास्तुकला के इस अदभुत नमूने का पता लगाने के लिए भी पर्याप्त कारण होना चाहिए आप यह जान कर हैरान हो जाएंगे कि रानी की वाव को रानी ने अपने पति की याद में बनाया है रानी की वाव या रानी की बावड़ी गुजरात के पाटन जिले में स्थित हैं इसका निर्माण 1022 ओऱ 1063 ई के बीच किया गया था 1950 के दशक में।कई साल खोए रहने के बाद इस खूबसूरत दशक को फिर से खोया गया था यह कि प्रचंड नक्कासी अदभुत है इस जगह में कई आदित्य खासियत सामिल है जिन्होंने इसे देश मे सबसे खूबसूरत बावड़ीयो में से एक बना दिया है इस बावड़ी का निर्माण सोलंकी राजवँश के

देवगढ़ का किला

Image
सीकर की स्थापना 1690 ई के  आसपास राव राजा दौलत सिंह जी के द्वारा की गई थी सिक्त का प्राचीन राव भिन भान का वास हुआ करता था लेकिन फिर आगे चल कर राव राजा कल्याण सींघ जी ने इसे बदलकर सीकर कर दिया था सीकर एक ऐतिहासिक शहर है जहाँ पर कई हवेलिया है जो कि मुख्य पर्यटक आकर्षण है सीकर की सुरक्षा ओऱ दुश्मनो पर निगरानी करने के लिए देवगढ़ में किले का निर्माण करवाया गया था किले का निर्माण सीकर के राव राजा कल्याण सिंह जी के भाई देवी सिंह जी ने 1786 ई में करवाया था ताकि इसके जरिए सीकर की पूरी सिमा पर नजर रखी जा सके देवगढ़ किले के सामने एक रेवासा पहाड़ी है जहां पे यह किला है जो खण्डेला के राजा के अधीन था देवी सिंह जी के द्वारा जब देवगढ़ किले का निर्माण सुरु करवाया गया तो खण्डेला के राजा ने इसका विरोध भी किया  ओर तोप से गोले चलाए थे इस कारण किले का निर्माण करने वाले कारीगर डर के मारे भाग गए इसके बाद देवीसिंह जी के साथी अलवर के राजा प्रताप सींघ जी ने अपने यह के विशेस कारीगर भिजवाए जिन्होंने इस किले को बनाने में चार साल लग़ा दिए थे देवगढ़ किले का गेट दस्सिन दिसा की  ओऱ है उस

निमरानी दुर्ग

Image
नीमराना  (वास्तविक उच्चारण :नीमराणा)  भारत  के  राजस्थान  प्रदेश के  अलवर जिले  का एक प्राचीन ऐतिहासिक शहर है, जो नीमराना तहसील में दिल्ली-जयपुर राजमार्ग पर दिल्ली से 122 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह 1947 तक चौहानों द्वारा शासित 14 वीं सदी के पहाड़ी किले का स्थल है। नीमराना के अंतिम राजा राजेन्द्र सिंह ने महल पर तिरंगा फहराया यह क्षेत्र राठ के नाम से जाना जाता है कहावत है काठ नवे पर राठ नवे ना , जो इसके अंतिम शासक है और उन्होंने प्रीवी पर्स के उन्मूलन के बाद किले के रखरखाव में असमर्थ होने के कारण इसे नीमराना होटल्स नामक एक समूह को बेच दिया, जिसे इसने एक हेरिटेज (विरासत) होटल में बदल दिया. नीमराना से कुछ दूरी पर  अलवर जिले  में एक दूसरा किला केसरोली है, जो सबसे पुराने विरासत स्थलों में से एक है। इतिहासकार इसे  महाभारत  काल का  मत्स्य  जनपद बताते हैं। केसरोली में कोई विराटनगर के बौद्ध  विहार  के सबसे पुराने अवशेष देख सकता है, जहां पांडवों ने भेष बदलकर अपने निर्वासन के अंतिम वर्ष बिताये थे, जहां के पांडुपोल में हनुमान की लेटी हुई प्रतिमा, पुराने जलाशयों के अल

मांडलगढ़ का किला

Image
वीर विनोद ग्रंथ के अनुसार अजमेर के चौहान शासकों ने मांडलगढ़ के गिरि दुर्ग का निर्माण करवाया. मंडलाकृति होने के कारण इसका नाम मांडलगढ़ पड़ा. जनश्रुति के अनुसार मांडिया भील के नाम पर यह किला मांडलगढ़ कहलाया.  मुगल बादशाहों ने मांडलगढ़ को मेवाड़ के प्रवेश द्वार के रूप में अपने सैनिक अभियानों का केंद्र बनाया. 1576 ई में हल्दीघाटी युद्ध से पूर्व मानसिंह ने एक महीने तक मांडलगढ़ में रहकर शाही सेना को तैयार किया था. महाराजा राजसिंह ने मुगलों से मांडलगढ़ को छीन लिया. तत्पश्चात यह किला किशनगढ़ नरेश रूपसिंह राठौड़ की जागीर में रहा. किले के प्रमुख भवनों में ऋषभदेव का जैन मन्दिर, दो प्राचीन शिव मंदिर उड़ेशवर और जलेश्वर महादेव, सैनिकों के आवासगृह, अन्न भंडार महल आदि. मांडलगढ़ राजस्थान के भीलवाड़ा जिले की एक पंचायत समिति हैं. इसकी जिला मुख्यालय से लगभग ५० किमी की दूरी पर स्थित यह स्थान ऐतिहासिक महत्व का रहा हैं. पन्द्रहवी शताब्दी में मूह्मूद खिलजी ने इस किले पर आक्रमण किया, उसे दोनों आक्रमणों में सफलता हाथ लगी और किला उसके अधीन हो गया. मुगल बादशाह शाहजहाँ ने इस किले को राजारू

अजबगढ़ का किला

Image
अजबगढ़ का किला राजस्थान के झुंझुनूं जिले से70 किलोमीटर ओर जयपुर शहर से90 किलोमीटर दूर स्थित है राजस्थान के झुंझुनूं जिले में स्थित अजबगढ़ का किला घूमने लायक हैं यह भानगड़ ओर प्रताप गढ़ किले के बीच स्थित है ओर सरिस्का के काफी करीब है यह किला भानगड़ किले तथा शहर के इतिहास तथा पौराणिक कथाओं के साथ जुड़ा हुआ है अजबगढ़ का किला  भानगड़ जाने वाली रोड पर स्थित है अजबगढ़ से भानगड़ की दूरी 15 किलोमीटर हैं भानगढ़ के किले को देखने वाले सभी पर्यटक अजबगढ़ को जरूर देखकर जाते है क्योंकि यह भानगढ़ जाने वाले रास्ते पर ही स्थित है यह किला माधोसिंग के पौत्र अजबसिंह द्वारा बनवाया गया था ओर अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए स्थित है इस किले से अजबगढ़ टाउन ओर उसके आस पास के छेत्र साफ दिखाई देते है माधोसिंग के तीन बेटे थे सुजान सिंग चतरसिंह तेज सिंह माधोसिंग के बाद चतरसिंह भानगड़ का शासक हुआ चतरसिंह के बेटे अचरसिंग थे यह भी साही मनसबदार थे अजबसिंह ने अपने नाम पर अजबगढ़ बसाया था अजबसिंह का बेटा काबिल सिंह ओऱ काबिल सिंह का बेटा जसवंत सिंह अजबगढ़ में रहे दोस्तो इस किले के चारो बरावनंदा है यह किल

लोहगड़ का किला

Image
राजस्थान के भरतपुर जिले में स्थित लोहगढ़ किले को भारत का एक मात्र अजेय दुर्ग कहा जाता है जो कि मिट्टी से बने इस किले को कोई नही जीत पाया यहा तक कि अंग्रेज भी नहीं जिन्होंने 13 बार इस किले पर अपनी तोप से आक्रमण किया था  राजस्थान को मरुस्थलों का राजा कहा जाता है यहा आने के ऐसे स्थान है जो पर्यटको को अपनी ओऱ आकर्षित करते है इस किले का निर्माण18 वी सताब्दी  के  आरंभ में महाराजा सूरजमल ने करवाया था महाराजा सूरजमल ने ही भरतपुर रियासत बसाई थी उन्होंने एक ऐसे किले की कल्पना की जो भेहद मजबूत हो ओऱ कम पैसे में ही तैयार हो जाए उस समय तोपो तथा बारूद का प्रचलन अत्यधिक था इस किले को बनाने में एक विशेष युक्ति का प्रयोग किया गया जिसे की बारूद के गोले भी दीवार पर बेअसर रहे यह राजस्थान के अन्य किलो के जितना विशाल नही है लेकिन फिर भी इस किले को अजेय माना जाता है इस किले की एक ओर खास बात यह है कि किले के चारो और मिट्टी की मोटी दीवार बनी हुई है निर्माण के समय पहले किले की  चोड़ी पथर की दीवार बनाई गई इन दीवार पर तोपो के गोले का असर न हो इस लिए इस दीवार के सेकड़ो दूर ओर मिट्टी की दीवार

बाड़मेर का किला

Image
दोस्तो आज हम बात कर रहे है बाड़मेर के भग किले के बारे में बादमेर का किला राजस्थान राज्य के बाड़मेर में स्थित है बाड़मेर के प्रसिद्ध किले की गिनती राजस्थान के प्रसिद किले में कई जाती है बाड़मेर किले का निर्माण कार्य रावत भीम द्वारा 1552 ई में सुरू करवाया गया था इस किले का निर्माण उन्होंने तब करवाया था जब उन्होंने पुराने बाड़मेर को वर्तमान शर में स्थानातरित कर दिया था यह किला बाड़मेर के गढ़ के रुप में भी जाना जाता है इस पहाड़ी पर रावय भीम ने किले को बनवाया था उस पहाड़ी की चोटी की ऊचाई 1383 फुट है रावत भीम ने किले का निर्माण 663 की ऊचाई पट सुरक्षा की दृष्टि से करवाया था बाड़मेर का किला शहर में आने वाले पर्यटकों का मुख्य केंद्र है जो प्रत्येक वर्ष की हजार पर्यटकों को आकर्षित करता है इस किले की सबसे खास बात यह भी है कि यह चारो तरफ से मन्दिरो से घिरा हुआ है इतिहास के अनुसार बाड़मेर किले का इतिहास लगभग 400 साल से भी पुराना माना जाता है बाड़मेर किले का निर्माण रावत भीम ने 1552 ई में उस समय करवाया था जब उन्होंने अपनी वर्तमान राजधानी को बाड़मेर में स्थानांतरित किया था इस क

दाता फोर्ट

Image
उची पहाड़ी पर अपना गरबिला मस्तब उठा कर खड़े अपना एक सरणीम इतिहास है इस किले की कहानी ओर इस किले का संचित इतिहास आज आज हम बताएंगे इस छोटे से किले व छोटी सी रियासत के शासको ने लड़े थे बड़े बड़े युद्ध मराठा मल्हार राव ने भी किया था इस किले पर युद्ध जिसका मुहतोड़ जवाब दिया था यह के शासकों ने इस किले पर आज भी विधमान है मराठो के तोपो के गोलो के निशान आजादी के बाद भी इस किले के तत्कालीन शासक थे जिनके आगे चुनाव में नहीं टिक पाती थी बड़ी बड़ी राष्ट्रीय पालटियां राजस्थान के सीकर जिले में स्थित दाता फोर्ट के संस्थापक थे ठाकुर अमर सिंह ठाकुर अमर सिंह खडेल के राजा के द्वितीय पुत्र थे आमर सिंह को आजीविका के लिए 9 गांव वसीयत में मील थे अमर सिंह जी अपनी जागीर के एक गांव राजपुरा में रहने के लिए खण्डेला से आए ओर राजपुरा में एक टीले पर गढ़ की नींव भी लगाई लेकिन विक्रम सवंत 1709 में वे लोसल चले गए मार्च सुकल पंचमी में गढ़ की नींव लगाई ओर वह अपना गढ़ बनवाया अमरसिंह जी की बहन का विवाह जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह जी के साथ हुआ था अतः अमरसिंह अपने बहनोई जसवंत सिंह जी के साथ साही सेव