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Showing posts from January, 2021

बाला किला

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बाला किला अलवर के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है इस किले को अलवर किले के नाम से भी जाना जाता है इस किले का निर्माण 1550 ई में हसन खान मेवाती ने करवाया था यह किला अलवर जिले के ऊपर अरावली रेंज में स्थित है इस किले की सबसे खास बात यह है कि इस किले पर मराठो यादवो ओर कछवाह राजपूतो का शासन भी रहा है बल किले का शाब्दिक अर्थ यंग फोर्ट है इस किले का उपयोग मुगलो ने रणथंभौर में हमला करने के आधार पर किया था 1775 ई में कछवाह राजपूत प्रताप सिंह जी ने किले पर कब्जा कर लिया यह किला अलवर शहर से बहुत बड़ा ओर साफ दिखाई देता है क्योंकि यह 300 मीटर चट्टान पट बसा है यह किला इतना विशाल है कि उत्तर से दक्षिण तक 5 किलोमीटर ओर पुत्व से पच्चीम तक डेढ़ किलोमीटर के छेत्र में फेला हुआ है किले में 6 द्वार है जिनके नाम जय पोल सूरज पोल लक्मणपोल चाँद पोल क्रष्ण पोल ओर अंदेरी गेट है यह सबी गेट राजपूतो की विराता ओर विशिष्टता की बात करते हैं अब जानते हैं बाला किले की वास्तुकला के बारे में बाला किला हिन्दू इस्लामिक शेली का एक वास्तुशिल्प टुकड़ा है इस किले की दीवारों को खूबसूरती ओर बारीक

लोहागढ़ का किला

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राजाओ के देश राजस्थान में सेकड़ो किले है हर किले की अपनी विशेषता है ऐसा ही किला है भरतपुर में जिसे लोहागढ़ किले के नाम से जाना जाता है 8 फिरंगी 9 गोरा लड़े जाट के दो छोरा यह कहावत की जाती है भरतपुर के ऐतिहासिक किले भरतपुर के लोहागढ़ के बारे में जिसे मुगल मराठा ओर अंग्रेज कभी फतह नहीं कर पाए यह ऐसा किला है जिकी स्थापना महाराजा सूरजमल ने की थी 1700 सो वी सदी का ये इस किले है जो हमेसा अजय रहा है जिसको कोई भी फतह नही कर सका हालांकि की प्रकार की सेनाओं ने मराठे हो चाहे मुगल हो चाहे अंग्रेजी सेना हो उन्होंने कई बार यहां अक्रमण किए लेकिन वो आक्रमण हमेसा विफल होते रहे यह भी कहा जाता है कि यहां स्वंय श्री कृष्ण इस किले की रक्षा करते थे इस किले के दो गेट है एक गोवर्धन गेट है इसकी मोटी मोटी दीवारे बनी हुई है जो पथर से बनी हुई है इसके चारों तरफ सुजान गंगा नहर है कहा जाता है कि सियासत के राजा किसर थे जो महिलाओं ओर दीनदुखियों की रक्षा करते थे झा धर्म का वास था टॉप के गोले इस किले की एक ईंट को भी नुकसान नहीं पहुंचा सके भरतपुर के राजा जवाहर सिंग ने दिल्ली

धोद का किला

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वीरान पड़ा यह किला राजस्थान के सेखवटी अंचल में सीकर जिले मुख्यालय से लग बग बिस किलोमीटर दूर धोद कस्बे में स्थिति है धोद कस्बा पंचायत समिति व विधानसभा क्षेत्र है यदि इसके अतीत में जाके तो सीकर रियासत के एक महत्वपूर्ण ठिकाना था ओर सीकर रियासत के दो राजाओ के कार्यकाल में रियासत की राजनीति का यह किला प्रमुख केंद्र भी था आज वीरान पड़ा यह किला अपने उदार की राह देख रहा है इस किले के चारो ओर इस के स्वामित्व में काफी भूंमि पड़ी है इतनी की जितनी पर एक कॉलोनी बनाई जा सकती है ओर किले को हेरिटेज होटल में बदलकर खाफी सारा धन कमाया जा सकता है हमे सूत्रों से मिले जानकारी के अनुसार यह किला बिकाऊ भी है अतः होटल व्यवसाय से जुड़े लोग इसे खरीदकर अपना।व्यवसाय भी बना।सकते है किले के मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही सामने एक बड़ा होल भी नजर आता है इस होल के बाहर चद्दर लगाकर एक बरामदा बनाया गया है जिसे देख के लगता है कि यह अगतुओ के लिए स्वागत कछ के रूप में बनाया गया है इस होल के ऊपर एक ओर होल बना है जिसे सीस महल कहा जाता है आज इसमे देखने पर सीसे का काम तो कही नजर नहीं आता पर महसूस ह

जयगढ़ का किला

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जयगढ़ किला सावन जयसिंह द्वारा निर्मित एक राजसी गढ़ है. यह लगभग अक्षुण्ण दुर्ग विशाल युद्धों से घिरा हुआ है और  आमेर किला  (जिसे ‘अम्बर’ किला भी कहा जाता है), उपनगरीय मार्ग से जुड़ा हुआ है. मूल रूप से आमेर किले और परिसर के भीतर महल की रक्षा के लिए बनाया गया, जयगढ़ किला आमतौर पर आमेर किले के समान है और जयपुर शहर का मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है. किले में पहियों पर दुनिया की सबसे बड़ी तोप, एक राजसी महल परिसर और एक संग्रहालय और एक शस्त्रागार के साथ ‘शुभ निवास’ के रूप में जाना जाने वाले योद्धाओं का विधानसभा हॉल है. किले की जटिल वास्तुकला के अलावा, किला एक विशाल खजाने के लिए भी प्रसिद्ध था, जिसके बारे में माना जाता था कि इसे किले के नीचे दफन किया गया था. अब यह कहा जाता है कि राजस्थान की सरकार ने उस खजाने को जब्त कर लिया था जब 1970 में इसकी खोज की गई थी. जयगढ़ किले को जयपुर शहर और आमेर किले को सरदारों और प्रतिद्वंद्वियों से सुरक्षित करने के लिए बनाया गया था. Ji                                                     जयगढ़ किला 18 वीं शताब्दी की शुरुआत में निर्म

भटनेर का किला

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भटनेर का किला एक मात्र भारत का सबसे पुराना किला है इस किले का 1700 साल पुराना इतिहास है कहा जाता है इस किले को 1700 साल पहले बनवाया गया था लेकिन रियल में यह कोई नहीं जानता कि यह किला कितना पुराना है ओर इस के चलते इस किले में हजारों घटनायें आज तक जिन्दा है जिसे आज तक कोई नहीं सुलझा पाया है इस किले का निर्माण जैसलमेर के राजा भाटी के पुत्र गोपत द्वारा 253 में करवाया गया कहा जाता हैं कि गजनी के सुल्तान के लड़ाई हारने के बाद राजा गोपद ने गगन नदी के आस पास घने जंगलों में सरण ली थी और इस ही वजह से यहां यह दुर्ग जो कि भटनेर है का निर्माण करवाया खास बात की यह किला छोटी छोटी डब्बीनुमा ईंटो से बनवाया गया ओर यह मृत दुर्ग के नाम से आज जाना जाता है 13 वी सताब्दी के मध्य में बलबन जो कि दिल्ली का सुल्तान था का चचेरा भाई जिसे सेरसासुरी के नाम से जाना जाता है ने यह पर शासन किया 1391 में भटनेर को तैमूर ने भाटी राजा राव दुर्जन को हरा कर जीता ओर इस का वर्णन तैमूर ने अपनी पुस्तक तुजुर ये तैमूरी में किया उसने अपनी पुस्तक में लिखा कि भारत के सबसे सुरक्षित किलो में से भटनेर

बीकानेर का किला

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बीकानेर नगर की स्थापना के साथही राव बीकाजी ने 1488ई में यह पर एक गढ़ का निर्माण करवाया जिसे बीकाजी की टेकरी के नाम से जाना जाता है उसी स्थान पर सासक राव रायसिंह ने सन 1588 से 1593 ई के मध्य जूनागढ़ किला का निर्माण करवाया जूनागढ़ का यह किला राति घाटी नामक चटटान पर बना है इस लिए इसे राति घाटी का किला भी कहते है यह किला धन्व दुर्ग ओर स्थल दुर्ग दोनों ही श्रेणियों में शामिल है जूनागढ़ किले को जमीन का जेवर नाम से भी जाना जाता है इस किले की आकृति चतुसकोणीय है ओर यह हिन्दू ओर वास्तु शेली में बनाया गया है राजस्थान में सबसे पहले इस किले में लिफ्ट लगाई गई थी जूनागढ़ किला में सात मुख्य प्रवेश द्वार है जिसमे पूर्वी दरवाजे के नाम कर्णपाल तथा पसमी दरवाजे का नाम चांदपोल रखा गयाहैं इन दो मुख्य द्वार के अलावा 5 आंतरिक द्वार भी है जो इस प्रकार है सूरजपोल, फतेपोल, दोलतपोल, रतनपोल,ओर दुर्वपोल, सूरजपोल जूनागढ़ किला का सबसे महत्वपूर्ण द्वार है इस का निर्माण पिले पथरो से किया गया है जिस पर रायसिंह प्रशस्ति उत्कीर्ण है इस द्वार के दोनों ओर सन 1567ई में चित्तोड़ के तीसरे साके में व

कुचामन का किला

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वीरता ओर सौर्य का प्रतीक यव किला विशाल ओर उची पहाड़ी पर बसा है जो गिरी दुर्ग का सुंदर उदाहरण हैं उन्नत प्राचिन ओर सुदृढ़ पुर्जो वाला यह किला प्राचिन शास्त्रो में स्थित प्राचिन शास्त्रो में शिल्प शास्त्रो में वर्णित दुर्ग स्थापत्य के आकरसो के अनुरूप सुंदर उदाहरण है नागौर जिले की नावा तहसील में स्थित मेड़तिया राठोड़ो का एक प्रमुख ठिकाना था यह किला सुदृढ़ किले के लिए भी विख्यात हैं भव्य दुर्ग के निर्माण के लिए अपने भव्य ओर सुदृढ़ दुर्ग के लिए भी विख्यात है इस भव्य दुर्ग के निर्माण के सम्बंध में प्रमाणिक जानकारी का अभाव है पट प्रचलित लोग मान्यता ओर इतिहास के अनुसार यहां के प्राकृतिक मेड़तिया शासक जालिम सिंह ने वनखण्डी नामक महात्मा के आशिर्वाद से जो उस वक़्त यह पर तपस्या करते थे इस किले की नींव रखी जिसका कालांतर में उनके वंश ओर विस्तार ओर परिवर्तन किया आप को बता दे कि किले में आज भी उस महात्मा का दूना विधमान है औऱ प्रचलित हैं  यही नहीं यहां के शासकों ने महात्मा का सम्मान रखते हुए उनके स्थान पर सबसे ऊपर रखा है राजा के रहने के महल सेनिको के रहने के आवास किले में

सिवाणा का किला

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दोस्तो सिवाणा किले का निर्माण 10 सताब्दी परमार राजा भोज के पुत्र वीर कुमार परमार ने करवाया था यह दुर्ग बाड़मेर जिले की छपन की पहाड़ियों में हल्देश्वर पहाड़ी पर बनाया गया है यह किला गिरी दुर्ग ओर वन दुर्ग दोनों श्रेणियों में शामिल है सिवाणा किले को कई अन्य नामो से भी जाना जाता है इस का प्राचीन नाम कुम्बना दुर्ग था जबकि इसे मारवाड़ कि शरणस्थली या मारवाड़ के राजाओ की शरणस्थली भी कहते है क्योकि मारवाड़ के शासक राव मालदेव राठौड़ ने ओर राव चन्द्रसेन राठौड़ ने आपत्ति के समय यह शरण ली थी दोस्तों सिवाणा किले में कुमत नामक झाड़ी आदिक मात्रा में मिलती है इस लिए इसे कुमट दुर्ग भी कहते हैं इस के अलावा सिवाणा किले को जालोर किले की कुंजी के रूप में भी जाना जाता है सिवाणा किले में इतिहास प्रसिद्ध दो साके हुए जो इस प्रकार है सिवाणा किले का प्रथम सका सन1308 ई में हुआ थाजब अलाऊदीन खिलजी के सेनापति कमलौदीन दुर्ग ने राजा सातल देव के सेना पति आवला पवार को दुर्ग का लालच देकर किले के भीतर मौजूद प्रमुख पेयजल स्रोत भांडेलाव तालाब को गो मास से दूषित करवादिया जब दुर्ग की रक्षा का कोई अ