दाता फोर्ट

उची पहाड़ी पर अपना गरबिला मस्तब उठा कर खड़े अपना एक सरणीम इतिहास है इस किले की कहानी ओर इस किले का संचित इतिहास आज आज हम बताएंगे इस छोटे से किले व छोटी सी रियासत के शासको ने लड़े थे बड़े बड़े युद्ध मराठा मल्हार राव ने भी किया था इस किले पर युद्ध जिसका मुहतोड़ जवाब दिया था यह के शासकों ने इस किले पर आज भी विधमान है मराठो के तोपो के गोलो के निशान आजादी के बाद भी इस किले के तत्कालीन शासक थे जिनके आगे चुनाव में नहीं टिक पाती थी बड़ी बड़ी राष्ट्रीय पालटियां राजस्थान के सीकर जिले में स्थित दाता फोर्ट के संस्थापक थे ठाकुर अमर सिंह ठाकुर अमर सिंह खडेल के राजा के द्वितीय पुत्र थे आमर सिंह को आजीविका के लिए 9 गांव वसीयत में मील थे अमर सिंह जी अपनी जागीर के एक गांव राजपुरा में रहने के लिए खण्डेला से आए ओर राजपुरा में एक टीले पर गढ़ की नींव भी लगाई लेकिन विक्रम सवंत 1709 में वे लोसल चले गए मार्च सुकल पंचमी में गढ़ की नींव लगाई ओर वह अपना गढ़ बनवाया अमरसिंह जी की बहन का विवाह जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह जी के साथ हुआ था अतः अमरसिंह अपने बहनोई जसवंत सिंह जी के साथ साही सेवा में चले गए ओर जोधपुर महाराज के साथ कई रक्तरंजित युदो में भाग लेकर अपनी वीरता प्रदर्शित की उनकी वीरता की ख्यात से प्रभावित होकर जोधपुर महाराज ने विक्रम सवंत 1720 में भादवा में अमरसिंह जी को शेखावटी प्रदेश की परगना में अपनी मनसब की जागीर चार गावो के साथ दाता कस्बा भी दिया अमरसिंह जी के बाद उनके पुत्र रतनसिंह जी यहा के स्वामी बने जिन्होंने विक्रम सवंत 1754 में हरिपुरा गांव के मध्य ओरंगजेब की की सेना व खडेला के राजा केसरीसिंह के मध्य मुसलमान सेना के।खिलाफ युद्द लड़ा ओर अपनी तलवार को दिखलाते हुए वीरता का प्रदर्शन किया था ठाकुर अमरसिंह सहित उनकी 16 पीढ़ियों ने दाता पर शासन किया था आजादी के समय ठाकुर मदनसिंह जी दाता के सासक थे चीन के साथ जब भारत का युद्ध हुआ तब रक्छा मेरर ने जयपुर में सभा मे सहायता की गुहार की तब ठाकुर मदनसिंह जी ने 1लाख रुपये वज़न की तलवार व अपने बड़े पुत्र को देश की रक्षा के लिए दान कर दिया था 

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