देवगढ़ का किला

सीकर की स्थापना 1690 ई के  आसपास राव राजा दौलत सिंह जी के द्वारा की गई थी सिक्त का प्राचीन राव भिन भान का वास हुआ करता था लेकिन फिर आगे चल कर राव राजा कल्याण सींघ जी ने इसे बदलकर सीकर कर दिया था सीकर एक ऐतिहासिक शहर है जहाँ पर कई हवेलिया है जो कि मुख्य पर्यटक आकर्षण है सीकर की सुरक्षा ओऱ दुश्मनो पर निगरानी करने के लिए देवगढ़ में किले का निर्माण करवाया गया था किले का निर्माण सीकर के राव राजा कल्याण सिंह जी के भाई देवी सिंह जी ने 1786 ई में करवाया था ताकि इसके जरिए सीकर की पूरी सिमा पर नजर रखी जा सके देवगढ़ किले के सामने एक रेवासा पहाड़ी है जहां पे यह किला है जो खण्डेला के राजा के अधीन था देवी सिंह जी के द्वारा जब देवगढ़ किले का निर्माण सुरु करवाया गया तो खण्डेला के राजा ने इसका विरोध भी किया  ओर तोप से गोले चलाए थे इस कारण किले का निर्माण करने वाले कारीगर डर के मारे भाग गए इसके बाद देवीसिंह जी के साथी अलवर के राजा प्रताप सींघ जी ने अपने यह के विशेस कारीगर भिजवाए जिन्होंने इस किले को बनाने में चार साल लग़ा दिए थे देवगढ़ किले का गेट दस्सिन दिसा की  ओऱ है उसके आगे सुरक्षा कवच के तौर पर एक मोटी दीवार बनाई गई है प्रवेश करते ही परकोटे के अंदर लम्बा चोडा परिसर है जिसमे पुराने जमाने मे तोपे तैनात रहती थी थोड़ा ऊचाई पर चढ़ने पर एक दरवाजा नजर आता है जिसके सामने मौज बन्दी की दीवार है यह सैनिक  बन्दूक लेकर खड़े यहा दो रास्ते है रक पूर्व में ओऱ दूसरा पस्चिम में पूर्व में सेनिको के रहने के लिए कमरे अलग से बनाए गए हैं सीढ़िया चढ़ने के बाद एक विशाल दरबार महल नजर आता है जिसके पाँच दरवाजे है अंदर राजा के बैठने का स्थान ओऱ प्रांगण बना हुआ है जिसके पीछे की तरफ खिड़कियां बनी हुई है किले के चारो तरफ कंठनी नुमा दीवार बनी हुई है जो सामरिक द्रष्टि से काफी विसाल है जबकि चोक में बारूद खाना बनवाया गया है 

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